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ध्याये नित्यं महेशम Dhyaye Nityam Mahesham

ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रां वतंसं।

रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।।

पद्मासीनं समंतात् स्तुततममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं।

विश्वाद्यं विश्वबद्यं निखिलभय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।

सरल शब्दों में मतलब है कि पञ्चमुखी, त्रिनेत्रधारी, चांदी की तरह तेजोमयी, चंद्र को सिर पर धारण करने वाले, जिनके अंग-अंग रत्न-आभूषणों से दमक रहे हैं, चार हाथों में परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा है। मुखमण्डल पर आनंद प्रकट होता है, पद्मासन पर विराजित हैं, सारे देव, जिनकी वंदना करते हैं, बाघ की खाल धारण करने वाले ऐसे सृष्टि के मूल, रचनाकार महेश्वर का मैं ध्यान करता हूं।

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Praṇāma

I am a mathematician by hobby. I created this site/blog to pen down the philosophical and spiritual ideas/concepts/thoughts that go through my mind.

I will also use this site as a repository to store the spiritual and religious music I listen.

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